स्वास्थ्य को व्यक्ति के स्व और उसके परिवेश से तालमेल के रुप में परिभाषित किया जा सकता हैं। विकृति या रोग होने का कारण व्यक्ति के स्व का ब्रह्मांड के नियमों से ताल-मेल न होना है। चिकित्सा का कार्य रोगात्मक चक्र में हस्तक्षेप करके प्रकृतिक संतुलन को कायम करना और उचित आहार और योग की सहायता से स्वास्थ्य प्रक्रिया को दुबारा शुरु करना है। आहार और योग का कार्य खोए हुए संतुलन को फिर से प्राप्त करने के लिए प्रकृति की सहायता करना है।
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