भारत के विकास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन कालों प्रचीन कल , मध्यकाल और आधुनिक , काल में विभाजित किया गया है । हमारी वर्तमान संस्कृति की विशेषताएँ पूर्ववर्ती कालों से ग्रहण की गई है । विरासत के रूप में यह निरन्तरता हमारे जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है । यथापि भारतीय संस्कृति में कुछ जुड़ा और घटाहैं ,पसन्तु इसकी समग्र मूलभूत संरचना निरंतर बनी हुई है एवं भारत की लगभग आधी आबादी महिला मतदाताओं की है । संविधान के मुताबिक मतदाताओं को सजग रहकर अपने अधिकारों का उपयोग करना पड़ता है । हमारे संविधान में यह अधिकार रित्रयों को भी दिया है । मगर इस अधिकार का वैसा प्रभावी अमल नही होता रित्रयों के कितने प्रश्न बीच अधर में लटके हुए है जिनका कोई निराकरण नही होता । भारत की आजादी को 60 वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका है ,संविधान में समान अवसर तथा हिफाजत का आश्वासन भी दिया है ,क़ानूनी अधिकारों में भी सुधार किया गया है , व्यापक स्तर पर अक्षर ज्ञान देने के लिए राष्टीय नीति बनाई गई है । वर्तमान भारतीय समाज व्यवरथा पुरुस प्रधान है । इस में कोई दो मत नहीं । सभी धर्मो के पारिवारिक कायदो ने भी रित्रयों के न्याय एंव समानता का अधिकार नकार दिया है । समानता के आदर्श की बाते जोर -जोर से करने वाले लोग राजनीति दल ,लोगसभा ,विधानसभा स्थानीय स्वराज संस्थाओ या ग्राम पंचायतो में रित्रयों को लेते ही नहीं जो एक अत्यन्त शोचनीय बात है । राष्टीय आयोजनाओ के निमार्ण में तथा उससे सम्ब्धनिकत कार्यक़मो को कार्यन्वित करने में जब रत्री को को भी साझेदार बनाया जाएगा तभी सही अर्थों में लोकशाही स्थपित हो सकेगी ।
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