पर्यावरण और पारिस्थितिकी

₹1475/- ₹1495

पारिस्थितिकी तन्त्र (Eco-system),एक भौगोलिक इकाई में जैव-अजैव घटको की परस्पर अन्तप्र्रक्रिया से उत्पन्ना उस गत्यात्मक व्यवस्था को कहते हैं जहाँ ये घटक पदार्थ और उर्जा के आदान-प्रदान पर जैविक उत्पादन में संलग्न रहते हैं। यह प्रक्रिया अबाध गति से चलती रही हैं। एक कृषित भूमि में मृदा, जल, पोषक तत्व, सूर्य, प्रकाश एवं ताप आदि भौतिक तत्वों की व्यवस्था में विविध फसलें उगाई जाती हैं। जिनसे उत्पादन प्राप्त होता हैं। यदि व्यवस्था संतुलित बनी रही तो उत्पादन निरन्तर होता रहेगा। पारिस्थितिकी तंत्र के भौतिक संघट के तत्वों में गुणात्मक परिवर्तन के कारण फसलों के स्वरूप में अन्तर आ जाता हैं। उष्ण आद्र्र प्रदेश की तुलना में उष्ण-शुष्क की फसलें भिन्ना होती हैं और उनकी उत्पादकता में भी अन्तर होता है। कृषि भूमि का पारिस्थितिकी तंत्र प्रकृति एवं मानवीय तत्वों के समायोजन के कारण विविधतापूर्ण होता हैं। मृदा,जल,पोषक तत्व खाद और बीजों की गुणवत्ता में अन्तर के कारण उत्पादन में अन्तर पाया जाता हैं। यहि कारण है कि पश्चिमी देशों में कृषि का पारिस्थितिकी तंत्र पूर्वी देशों से भिन्ना है।

डाॅ. गजराज सिंह, अध्यक्ष भूगोल विभाग, राजकीय महिला महाविद्यालय फरीदाबाद, हरियाणा में कार्यरत है। डाॅ. सिंह को अध्यापन कार्य का 30 वर्षो का अनुभव प्राप्त है तथा अनेकों राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक सेमिनार में हिस्सा ले चुके हैं।